अरारुट का आटा

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अरारुट का आटा
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7000 वर्ष से भी पहले दक्षिण अमरीका मे उत्तपन्न हुआ अरारूट, मरनता वर्ग के राईज़ोम के खाने योग्य स्टार्च से मिलता है। यह माना जाता है कि आर्वक भारतीय इसे ऐरो-रूट नाम से जानते थे क्योंकि वह इसका प्रयोग ज़हरीले बाँड से लगे घाँव से ज़हर निकालने के लिये किया करते थे।

गाँव के जन जाति इसे अरु-अरु कहते थे (खाने का खाना), और जड़ो से आटा निकालने कि बहुत ही लंबी प्रक्रीया का प्रयोग किया जाता था। जड़ो को धोया जाता है, छिलकर, कुचला जाता है, भीगिकर गुदा निकालकर छाना जाता है। छाना हुआ तरल पदार्थ अौर पाउडर को सूखाया जाता है और बचा हुआ पाडर मिलता है।

भारत मे अरारूट को अक्सर कूया कहा जाता है। इसका रंग सफेद से हल्का बैंगनी होता है और यह 2 फीट से 5 फीट तक लंबा होता है। इसके अंदर कि जड़ खाने योग्य होती है, जिससे आटा बनाया जाता है। वैसे तो अरारूट बेस्वाद होता है। यह बारीक सफेद पाउडर होता है, जिसे छुने से कॉर्न-स्टार्च जैसा लगता है।

चुनने का सुझाव

अरारूट का आटा बाज़ार मे आसानी से मिलता है।

बारीक और सफेद आटा चुने, जो दिखने मे कॉर्न-स्टार्च जैसा दिखता है।

अरारूट का आटा पहचानने के लिये, इसे पानी मे मिलाने से हल्की गंध आती है, हालाँकि जब यह सूखा होता है, इसमे किसी भी प्रकार कि गंध नही होती।

कुछ उत्तपादक इसे अन्य स्टार्च (जैसे आलू) से मिलाते है, इसलिये, भरोसेमंद दुकानदार से ही खरीदें, क्योंकि मिले हुए अरारूट का प्रयोग करने आपका व्यंजन बिगड़ सकता है।

कुश दुकानों में, अरारूट ताज़े साबूत जड़ के रुप मे मिलता है, जिसे तसी गू या चायनीज़ पटॅटो नाम दिया जाता है।

रसोई मे उपयोग

इस स्टार्च का मुख्य रुप से खाने मे गाढ़ापन प्रदान करने के लिये किया जाता है, जैसे पुडिंग और सॉस।

बहुत से व्यंजनो मे इसे कॉर्न-स्टार्च या आटे से बदला जा सकता है। 1 टेबल-स्पून आटे के लिये 1 टी-स्पून अररूट का आटा लगता है, और । 1 टेबल-स्पून कॉर्न-स्टार्च कि जगह 2 टी-स्पून अररूट का आटा प्रयोग किया जा सकता है।

इस पाउडर व्यंजन मे डालने से पुर्व, ठंडे पानी मे मिलाना ज़रुरी होता है और इसे आखरी मे मिलाना चाहिए, क्योंकि इसे ज़्यादा पकाने से अरारूट कि जैल बनाने का गुण नष्ट हो सकता है। एक बार मिश्रण के ठंडे होने पर, आँच से तुरंत हठा लें, जिससे वह दुबारा पतला ना हो जाये।

अरारूट कम तापमान पर गाढ़ापन प्रदान करता है, वहीं, आटे या कॉर्नस्टार्च का प्रयोग उच्च तापमान पर किया जाता है।

अन्य स्टार्च के विपरीत, अरारूट जमने पर पारदर्शी हो जाता है और व्यंजन के रंग को बदलता नही है।

क्योंकि अरारूट बरस्वाद होता है, इसे किसी भी व्यंजन मे मिलाया जा सकता है।

व्यंजन मे साबूत जड़ का भी प्रयोग किया जा सकता है। जड़ को उबालने या तलने से पहले, इसकि कागज़ जैसी परत को निकालना ज़रुरी होता है। इसका प्रयोग कर चिप्स् बनायी जा सकती है, जिसे नमक या मसालों से साथ मिलाया जा सकता है।

बेक करते समय,इसका प्रयोग गाढ़ापन प्रदान करने के लिये किया जाता है जैसे फ्रूट पाई के भरवां मिश्रण औ र् ग्लेज़ में। इसका प्रयोग अरारूट कुकीस् बनाने मे भी किया जाता है। इससे चमकते फ्रूट जैली बना सकते है।

अरारूट के आटे मे ग्लूटेन कि इसे गेहूँ के आटे से मुक्त बेक्ड व्यचजन मे प्रयोग के लिये उपयुक्त बनाता है।

घर पर बनी आईस-क्रीम मे भी इसका प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि यह बर्फ जमने से रोकने मे मदद करता है।

कोरियन पाकशैली मे अरारूट के नूडल्स बनाये जाते है। ान्य ओरीएन्टल पाकशैली मे इसका प्रयोग एसिडिक पदार्थ को गाढ़ा बनाने के लिये किया जाता है, जैसे स्वीट एण्ड सॉर सॉस आदि।

संग्रह करने के तरीके

जड़ो कि फ्रिज मे रखें।

अरारूट के आटे को हवा बंद डब्बे मे रखकर ठंडी और सूखी जगह पर रखें और नमी और सूर्य कि किरणो से दुर रखें।

स्वास्थ्य विषयक

एतिहासिक रुप से यह कहा जाता है कि मसले हुए जड़ो को ज़हरीले बाँड से लगे घाँव, मकड़ी के काटने पर और गैंगरीन होने पर लगाने से आराम मिलता है।

जड़ो के ताज़े रस को पानी के साथ मिलाकर विष नाशक बनाया जाता है।

इससे पेट दर्द से आराम मिलता है, खासतौर पर स्वास्थ्य लाभकारी में कब्ज़ कि तकलीफ से।

अन्य शुद्ध स्टार्च कि तरह, अरारूट मे लगभग शुद्ध कार्बोहाईड्रेट होते है लेकिन प्रोटीन कि कमी होती है, इसलिये यह गेहूँ के आटे से अलग होता है।

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