थाइरॉयड के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

थाइरॉयड एक तरह की ग्रंथि होती है जो हम सब के गले में बिल्कुल सामने की ओर अवस्तित होती है। यह ग्रंथि हमारे शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है। यानी जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का कार्य करती है। इसके अलावा यह हमारे हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल को भी नियंत्रण करती है।

थाइरॉयड को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। क्‍योंकि इसके लक्षण एक साथ नही दिखकर धीरे-धीरे दिखाई देते हैं पुरूषों में थाइरॉयड की समस्या के लक्षण थाइरॉयड के प्रकार के अनुसार दिखाई देते है, यह किसी भी अंतर्निहित कारण, समग्र स्वास्थ्य, जीवन शैली में परिवर्तन और अंग्रेजी दवाओं के साथ चल रहे इलाज के कारण हो सकता है।

मस्तिष्क में पिट्यूरी ग्रंथि से स्रावित होने वाला हार्मोन जो की स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) कहलाता है। मानव शरीर में दो थाइरॉयड हार्मोंस के प्रवाह को प्रभावित करता है।

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को और जिनकी उम्र 60 वर्ष या उससे ज्यादा हो, उन्हें थाइरॉयड होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके साथ ही अगर आपके परिवार में किसी व्यक्ति को पहले से थाइरोइड की समस्या है तब भी आपको इसके होने की सम्भावना ज्यादा हो जाती है।

सबसे पहले हमेंथाइरॉयड के विभिन्न प्रकार के बारे में जानना होगा ।

थाइरॉयड के प्रमुख प्रकार –

थाइरॉयड  के प्रमुख प्रकार

यहां पर मुख्य छह प्रकार माने गए हैं, जो इस प्रकार हैं :

गॉइटर : भोजन में आयोडीन की कमी होने पर ऐसा होता है, जिससे गले में सूजन और गांठ जैसी नजर आती है। इसका शिकार ज्यादातर महिलाएं होती हैं। इसलिए, महिलाओं मेंथाइरॉयड रोग के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं।

थाइरॉयड नोड्यूल : इसमेंथाइरॉयड ग्रंथि के एक हिस्से में सूजन आ जाती है। यह सूजन कठोर या फिर किसी तरल पदार्थ से भरी हुई हो सकती है।

हाइपरथाइरॉयड : जब कभीथाइरॉयड ग्रंथि आवशयकता से ज्यादा हार्मोंस का निर्माण करती है।

हाइपोथाइरॉयड : जबथाइरॉयड ग्रंथि जरूरत से कम मात्रा में हार्मोंस का निर्माण नहीं करती है।

थाइरॉयड डिटिस : जबथाइरॉयड ग्रंथि में सूजन आती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली एंटीबॉडी का निर्माण करती है, जिससेथाइरॉयड ग्रंथि प्रभावित होती है।

थाइरॉयड कैंसर : जबथाइरॉयड ग्रंथि में मौजूद टिशू में कैंसर के सेल बनने लगते हैं।
आगे हमथाइरॉयड के कुछ प्रमुख लक्षणों के बारे में बता रहे हैं।


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लक्षण –

अगर आपके शरीर में भी निम्न प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, तो ये थाइरॉयड की हो सकते हैं :

  • पेट में कब्ज
  • पुरे शरीर थकावट
  • मस्तिष्क तनाव
  • रूखी त्वचा
  • वजन बढ़ना
  • जोड़ों में सूजन या दर्द
  • पतले और रूखे-बेजान बाल
  • याददाश्त कमजोर होना
  • मासिक धर्म का असामान्य होना
  • प्रजनन क्षमता में असंतुलन
  • मांसपेशियों में दर्द
  • पसीना आना कम होना
  • ह्रदय गति का कम होना
  • उच्च रक्तचाप
  • चेहरे पर सूजन
  • समय से पहले बालों का सफेद होना

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हमारे लिएथाइरॉयड के मुख्य कारणों के बारे में भी जानना जरूरी है, जिसके बारे में हम आगे बता रहे हैं।

कारण और जोखिम –

थाइरॉयड  के कारण और जोखिम कारक –

थाइरॉयड होने के सबसे अहम कारण इस प्रकार हैं :


फ्लोराइड युक्त पेस्ट और पानी के कारण भी थाइरॉयड ग्रंथि को काम करने में दिक्कत होती है।
हाशिमोटो थाइरॉयड जैसे ऑटोइम्यून विकार सीधा थाइरॉयड ग्रंथि पर हमला करते हैं।
टाइप-1 डायबिटीज, मल्टीपल स्केलेरोसिस, सीलिएक रोग व विटिलिगो जैसे ऑटोइम्यून विकार भी थाइरॉयड ग्रंथि को प्रभावित करते हैं।
गर्दन के लिए रेडियेशन थेरेपी और रेडियोएक्टिव आयोडीन उपचार भीथाइरॉयड का कारण बन सकता है।

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अमियोडेरोन, लिथियम, इंटरफेरॉन अल्फा और इंटरल्यूकिन-2 जैसी दवाइयां लेना भी एक कारण है।
आयोडीन, सेलेनियम, जिंक, मोलिब्डेनम, बोरोन, तांबा, क्रोमियम, मैंगनीज और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों की कमी के कारण भी थाइरॉयड हो सकता है।
गर्भावस्था के कारण।
थाइरॉयड ग्रंथि में कमी आने के कारण।
पिट्यूटरी ग्रंथि के क्षति होने या खराब होने पर।
हाइपोथैलेमय में विकार आने पर।
अधिक उम्र होने पर।
आर्टिकल के इस भाग में हम थाइरॉयड के विभिन्न उपचारों के बारे में बता रहे हैं।

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थाइरॉयड का इलाज –

एंटीबायोटिक लेने से आंतों में यीस्ट (एक प्रकार की फंगस) बननी शुरू हो जाती है। यीस्ट टॉक्सीनथाइरॉयड ग्रंथि में बाधा पहुंचाने का काम करती है।
पीने के पानी में क्लोरीन होने सेथाइरॉयड ग्रंथि बाधित हो जाती है।
थाइरॉयड का इलाज मरीज की उम्र,थाइरॉयड ग्रंथि कितने हार्मोन बना रही है और मरीज की चिकित्सीय परिस्थिति के अनुसार किया जाता है। हमने ऊपर बताया था किथाइरॉयड छह प्रकार का होता है, तो हम इलाज भी उसी के अनुसार बता रहे हैं (4)।

हाइपोथाइरॉयड: इसका इलाज दवा के जरिए किया जा सकता है। दवा के सेवन से शरीर को जरूरी हार्मोंस मिलते हैं। इसमें डॉक्टर सिंथेटिकथाइरॉयड हार्मोन टी-4 लेने की सलाह देते हैं, जिससे शरीर में हार्मोंस का निर्माण शुरू हो जाता है। हाइपोथाइरॉयड की अवस्था में यह दवा जीवन भर लेनी पड़ती है। अगर आप इसे डॉक्टर की सलाह के अनुसार लेते हैं, तो आपको किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा।
हाइपरथाइरॉयड: डॉक्टरथाइरॉयड रोग के लक्षण और कारणों के आधार पर हाइपरथाइरॉयड का इलाज करते हैं। यह इलाज इस प्रकार से होता है :
दवाइयां
डॉक्टर आपको एंटीथाइरॉयड दवा दे सकते हैं, जिसके सेवन सेथाइरॉयड ग्रंथि नए हार्मोन का निर्माण करना बंद कर देगी। भविष्य में इस दवा सेथाइरॉयड ग्रंथि को कोई नुकसान नहीं होगा।
बीटा-ब्लॉकर दवा के सेवन सेथाइरॉयड हार्मोन का शरीर पर असर पड़ना बंद हो जाएगा। साथ ही दवा ह्रदय गति को भी सामान्य कर सकती है। इसके अलावा, जब तक अन्य किसी इलाज का असर शुरू नहीं होता, तब तक यह दवा दूसरे लक्षणों के असर को भी कम कर सकती है। एक खास बात यह है कि इस दवा

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